नई दिल्ली। बीती 8 फरवरी को हुए आम चुनाव के नतीजों से स्पष्ट है कि जेल में बंद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के संस्थापक इमरान खान के वफादारों ने सभी बाधाओं को पार कर लिया है और राजनीतिक बाजीगरी को मात देकर विजयी हुए हैं। यह बात एक मीडिया रिपोर्ट में कही गई।द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, जहां इमरान के वफादार जीत गए, वहीं उन्हें धोखा देने वालों को देश में शक्तिशाली हलकों का समर्थन मिलने के बावजूद अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा।
देशभर में राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर 9 मई (2023) को हुए हमलों के बाद पीटीआई सरकार के गुस्से का शिकार थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इमरान की पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को जेल में डालकर उन्हें वफादारी बदलने या राजनीति छोड़ने के लिए मजबूर करके और उनकी गतिविधियों पर मीडिया ब्लैकआउट लगाकर उनकी पार्टी को राजनीतिक क्षेत्र से मिटाने का हर संभव प्रयास किया गया।
इमरान को धोखा देने वालों में प्रमुख खैबर-पख्तूनख्वा के पूर्व मुख्यमंत्री परवेज खट्टक थे, जिन्होंने पीटीआई-सांसद के नाम से एक अलग गुट बना लिया।
जहांगीर तरीन, जो कभी खान के बेहद करीबी माने थे, ने भी इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी (आईपीपी) नाम से एक पार्टी बना ली। जाहिर तौर पर ऐसा पीटीआई के भगोड़ों को लुभाने के लिए किया गया। हालांकि, चुनावों में आईपीपी को अपमानजनक हार मिली।