नई दिल्ली। बीते शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों (अप्रैल-अक्टूबर) के अंत में केंद्र का राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य का 46.5 प्रतिशत रहा है।
यह सरकार की मजबूत व्यापक आर्थिक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है, जिसमें सरकार राजकोषीय समेकन के मार्ग पर कायम है।
सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर लाना है, जो 2023-24 में 5.6 प्रतिशत है।
महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल-अक्टूबर के दौरान राजकोषीय घाटा – सरकार के व्यय और राजस्व के बीच का अंतर – 7,50,824 करोड़ रुपये था।
2024-25 के पहले सात महीनों के लिए केंद्र सरकार के राजस्व-व्यय के आंकड़ों से पता चला है कि शुद्ध कर राजस्व लगभग 13 लाख करोड़ रुपये या चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान का 50.5 प्रतिशत था।
सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को 16.13 लाख करोड़ रुपये तक सीमित रखना है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के दौरान 1 अप्रैल से 10 नवंबर तक भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर शामिल हैं, 15.4 प्रतिशत बढ़कर 12.1 लाख करोड़ रुपये हो गया।
केंद्रीय बजट 2023-24 में प्रत्यक्ष कर संग्रह का लक्ष्य 18.23 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था और बाद में संशोधित अनुमान (आरई) में इसे बढ़ाकर 19.45 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। सीबीडीटी ने कहा कि अनंतिम प्रत्यक्ष कर संग्रह (रिफंड के बाद शुद्ध) बीई से 7.40 प्रतिशत और आरई से 0.67 प्रतिशत अधिक है।
इसी प्रकार, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण जीएसटी संग्रह में भी मजबूत वृद्धि हुई है।
कर संग्रह में वृद्धि से सरकार के खजाने में अधिक धनराशि उपलब्ध होती है, जिससे वह आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश कर सकती है तथा गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चला सकती है।
इससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने और अर्थव्यवस्था के व्यापक आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में भी मदद मिलती है।
कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ता है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में बड़ी कंपनियों के लिए उधार लेने और निवेश करने के लिए अधिक पैसा बचता है। इससे आर्थिक विकास दर बढ़ती है और अधिक नौकरियां पैदा होती हैं।
कम राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति दर को भी नियंत्रण में रखता है, जिससे अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलती है।