मध्य प्रदेश में रेत माफियाओं के निशाने पर हमेशा रहे हैं अफसर

Sand

भोपाल। मध्य प्रदेश में रेत का खेल वर्षों से चल रहा है और जब भी किसी अफसर या कर्मचारी ने इस खेल पर रोक लगाने की कोशिश की, उसकी जिंदगी तक पर शामत आ गई। कई अफसर ने तो रेत के अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए जान तक को दांव पर लगाया है।

राज्य का बड़ा इलाका खासकर जहां से नदियां होकर गुजरी हैं, वह रेत माफियाओं के लिए दुधारू गाय साबित हुई है। सरकार भले ही रेत के जरिए रॉयल्टी में होने वाली बढ़ोतरी का जिक्र कर अपनी पीठ थपथपाए, मगर माफिया ने नदियों को खोखला करने का काम किया है। नर्मदा नदी से लेकर बेतवा नदी, सिंध नदी सहित अनेक नदियां ऐसी हैं, जिन पर पोकलेन मशीन नजर आना आम बात है।

कई माफिया तो ऐसे हैं, जो पनडुब्बी तक का रेत खनन के लिए सहारा लेते हैं। ऐसा नहीं है कि शासन-प्रशासन इन माफियाओं पर नकेल कसने की कोशिश न करता हो, मगर उनके आड़े राजनेता आ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह खनन का काम या तो राजनेता से जुड़ा परिवार करता है या फिर उनके करीबी। ऐसे में छोटे कर्मचारियों से लेकर बड़े अफसर तक के लिए माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई आसान नहीं होती। ऐसा इसलिए क्योंकि अफसरों की पोस्टिंग भी तो यही नेता कराते हैं।

राज्य में खनन माफियाओं के दुस्साहस का हम जिक्र करें तो अभी हाल ही में शहडोल जिले में खनन रोकने गए पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल को अपनी जान तक देनी पड़ गई। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो, मार्च 2012 में तो मुरैना में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह की भी माफियाओं ने हत्या कर दी थी, बात जून 2015 की करें तो बालाघाट में रेत खनन माफियाओं ने एक पत्रकार का अपहरण किया था और उसे जिंदा तक जला दिया था, इसी साल जून में शाजापुर में भी माइनिंग इंस्पेक्टर उसकी टीम के साथ मारपीट की गई थी।

सितंबर 2018 में मुरैना के देवरी गांव में खनन माफिया ने वन विभाग के डिप्टी रेंजर पर ट्रैक्टर चढ़ाकर हत्या कर दी थी। मई 2022 में भी अशोक नगर में खनन माफिया ने अवैध खनन रोकने वाले वन कर्मियों पर डंडों से हमला किया था। यह तो गिनती की घटनाएं हैं जो चर्चाओं में रहीं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इस तरह की वारदातें होते रहना आम बात हो गई है।

यह बात अलग है कि सत्ताधारी दल पर विपक्षी दल हमला करता है और जब सत्ताधारी दल बदल जाता है तो दूसरा दल उस पर हमला करने लगता है। मगर दोनों ही दलों से जुड़े लोगों का संरक्षण ऐसे माफियाओं को मिलता रहा है। उसी का नतीजा है कि वह दुस्साहसी हो गए हैं और सरकारी मशीनरी को कुचलने तक में हिचक नहीं दिखाते।

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