कुपोषण ने यमन संकट को और बढ़ाया, एनजीओ को आशंका भविष्य में स्थिति होगी भयावह

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नई दिल्ली। युद्धग्रस्त यमन में कुपोषण पहले से ही भयावह मानवीय स्थिति को और गंभीर बना रहा है। एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने यह चेतावनी दी।

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (एमएसएफ) की यमन मिशन प्रमुख इल्लारिया रासूलो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा, कुपोषण एक संकट के भीतर का संकट है। इसने यमन की स्थिति और वहां की आबादी को और कमजोर कर दिया है।

रसूलो ने कहा कि 2024 बहुत कठिन वर्ष रहा, जिसमें पूरे यमन में डायरिया का प्रकोप था और एमएसएफ फैसिलिटी में कुपोषण के अत्यधिक मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा खसरा का प्रकोप और पोलियो और डिप्थीरिया के छिटपुट मामले भी सामने आए।

उन्होंने कहा हमें आशंका है कि साल 2025 तक प्रकोप और बढ़ेगा। यमन में मानवीय स्थिति बेहद खराब है। इसे देखते हुए कई गैर सरकारी संगठनों को अपनी गतिविधियों को कम करना पड़ रहा है या यहां तक ​​कि देश छोड़ना पड़ रहा है, क्योंकि प्रमुख दाताओं द्वारा फंडिंग में कटौती की जा रही है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका से धन की आपूर्ति पर रोक भी शामिल है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेशी सहायता के पुनर्मूल्यांकन और पुनर्गठन पर एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें देश की विदेशी विकास सहायता में 90 दिनों की रोक का आदेश दिया गया है।

हूती समूह और ट्रंप प्रशासन के बीच तनाव तब से बढ़ गया है, जब वाशिंगटन ने 15 मार्च को यमन में हूती ठिकानों पर फिर से हवाई हमले शुरू किए।

अमेरिकी हवाई हमलों के बाद से सबसे घातक हमले में अमेरिकी सेना ने गुरुवार रात हूती-नियंत्रित रास ईसा ईंधन बंदरगाह और आयातित ईंधन भंडारण करने वाले कंक्रीट टैंकों को निशाना बनाया। हूती-नियंत्रित स्वास्थ्य अधिकारियों के शनिवार तड़के दिए गए अपडेट के अनुसार, हमले में करीब 80 लोग मारे गए और 150 घायल हुए।

इससे पहले शनिवार को अमेरिकी सेना ने उत्तरी यमन में हूती ठिकानों पर 29 हवाई हमले किए, जबकि हूती क्रांतिकारी समिति के प्रमुख मोहम्मद अली अल-हूती ने जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई।

ईरान और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने अमेरिकी हवाई हमलों की निंदा की है।

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