वन्यजीवन समर्पण की मिसाल थी ‘वत्सला’, सीएम मोहन यादव ने कहा- यादें हमेशा जीवित रहेंगी

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भोपाल। एशिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी मानी जाने वाली वत्सला की मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 100 साल से अधिक उम्र में मौत हो गई। हथिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि वत्सला का सदियों पुराना साथ आज खत्म हो गया। वत्सला ने पन्ना टाइगर रिजर्व में अंतिम सांस ली।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वत्सला हथिनी की फोटो साझा की। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा, वह मात्र हथिनी नहीं थी, हमारे जंगलों की मूक संरक्षक, पीढ़ियों की सखी और मध्य प्रदेश की संवेदनाओं की प्रतीक थीं। टाइगर रिजर्व की यह प्रिय सदस्य अपनी आंखों में अनुभवों का सागर और अस्तित्व में आत्मीयता लिए रही। उसने कैंप के हाथियों के दल का नेतृत्व किया और नानी-दादी बनकर हाथी के बच्चों की स्नेहपूर्वक देखभाल भी की। वह आज हमारे बीच नहीं है, पर उसकी स्मृतियां हमारी माटी और मन में सदा जीवित रहेंगी। वत्सला को विनम्र श्रद्धांजलि।

छतरपुर जिले के पन्ना विधानसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद बृजेंद्र पाटप सिंह ने वत्सला के निधन पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी गरिमा और स्नेह पन्ना टाइगर रिजर्व में समाहित थे।

भाजपा सांसद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, करीब 100 साल तक वन्यजीवन की गौरवशाली यात्रा तय करने वाली दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला का निधन पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए एक भावनात्मक क्षण है। वत्सला सिर्फ एक हथिनी नहीं, बल्कि हमारी विरासत की प्रतीक और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र थी। उसका स्नेह, उसकी गरिमा और उसकी उपस्थिति पन्ना के जंगलों की आत्मा में रची-बसी थी। उसकी विदाई वन्यजीवन प्रेमियों के लिए अपूरणीय क्षति है।

वन कर्मचारियों और वन्यजीव प्रेमियों के बीच दादी और दाई मां के नाम से मशहूर वत्सला की उम्र 100 साल से अधिक थी और वह लंबे समय से बीमारी से जूझ रही थी। उसने अपने अंतिम दिन हिनौता शिविर में बिताए, जहां वन कर्मचारियों ने उसकी प्यार से देखभाल की। शिविर में उसका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया गया।

एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, पन्ना की सबसे बुजुर्ग और सबसे प्यारी हथिनी, जिसके कई अंग काम करना बंद कर चुके थे और वो पशु चिकित्सकों की निगरानी में थी। उसकी मौत के साथ ही प्रेम, विरासत और वन्यजीव समर्पण का एक अध्याय समाप्त हो गया।

केरल के नीलांबुर जंगलों में जन्मी वत्सला को 1971 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद लाया गया और बाद में 1993 में पन्ना टाइगर रिजर्व में भेजा गया था। एक दशक तक, उसने पीटीआर में बाघों को ट्रैक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह 2003 में सेवानिवृत्त हो गई। वत्सला पर्यटकों की पसंदीदा थी और उसे पन्ना का गौरव माना जाता था।

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