बिहार चुनाव 2025: परसा सीट पर रहा राय उम्मीदवारों का दबदबा, गैर यादव कभी नहीं जीते

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नई दिल्ली। बिहार के सारण जिले में स्थित परसा विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां 18 बार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन इस सीट की खास बात ये है कि यहां की जनता ने कभी गैर-यादव को विधानसभा नहीं पहुंचने दिया। यहां के लोगों की जातीय निष्ठा इतनी गहरी है कि वे नेताओं के दल बदलने पर भी प्रभावित नहीं होते।

गंगा नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र का परसा बाजार स्थानीय व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। वहीं गंगा घाट धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए प्रसिद्ध है। प्रशासनिक दृष्टि से परसा एक सामुदायिक विकास खंड है, जो गंडक नदी से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह क्षेत्र कृषि प्रधान है, जहां धान, गेहूं, मक्का और दालों के साथ-साथ केले की खेती ने भी गति पकड़ी है। डेयरी और पोल्ट्री से ग्रामीण जनता को अतिरिक्त आय का स्रोत मिल रहा है। एकमा सबडिवीजन मुख्यालय यहां से 7 किलोमीटर, जिला मुख्यालय छपरा 42 किलोमीटर और पटना 60 किलोमीटर दूर है।

राजनीतिक तौर पर परसा विधानसभा क्षेत्र में एक खास पहचान रही है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की राजनीतिक विरासत ने इस क्षेत्र पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। परसा में जीत हर किसी के लिए आसान नहीं है। अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां भाजपा का कभी खाता नहीं खुला और कांग्रेस भी 1985 के बाद कभी जीत हासिल नहीं कर सकी।

इस सीट पर कुछ वर्षों से मुकाबला राजद बनाम जदयू रहा है, लेकिन इसमें भी कोई एक स्थायी नहीं है। 1951 में अस्तित्व में आई परसा विधानसभा सीट पर 18 बार चुनाव हुए। 1952 में पहला चुनाव हुआ और कांग्रेस के टिकट पर दरोगा प्रसाद राय जनता की पहली पसंद बने। इसके बाद अगले 7 विधानसभा चुनावों तक जनता का मोहभंग बिल्कुल नहीं हुआ।

इसके बाद 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में रामानंद प्रसाद यादव को अपना प्रतिनिधि चुनकर यहां के लोगों ने पहला परिवर्तन किया।

इसके बाद से परसा की जनता ने तीन चुनाव में अलग-अलग लोगों को मौका दिया। हालांकि, 1985 के चुनाव में जनता ने फिर से दरोगा प्रसाद राय के परिवार का भरसक साथ दिया। दरोगा प्रसाद राय के बेटे चंद्रिका राय ने पिता की राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला और वे लगातार 5 विधानसभा चुनावों में विजयी रहे। हालांकि, उन्होंने समय के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को बदलने का सिलसिला बनाए रखा। 2015 में छठी बार उन्हें जीत मिली थी।

लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव के साथ चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय की शादी हुई। हालांकि, तेज प्रताप और ऐश्वर्या राय का रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला। इस कारण चंद्रिका प्रसाद ने राजद से इस्तीफा दे दिया और अगले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

अहम बात ये है कि परसा से कोई भी गैर-यादव उम्मीदवार कभी नहीं जीता है।

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